हाथ नहीं, हिम्मत चाहिये

ज़िंदगी है तो मुश्किलें भी आनी है, लेकिन जो हर मुश्किल को पार कर जाता है, वही असली हिम्मत वाला होता है। इसी हिम्मत का उदाहरण बनी है, ‘मालविका’ जिसने, एक बम एक्सिडेंट में अपने दोनों हाथ खो दिये थे। उनके हाथ भले ही न हो पर उन्होंने अपनी हिम्मत को कभी नहीं हारने दिया। आज इस मुकाम में खड़ी है कि मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर जानी जाती हैं।
वो पल, जो भुला ना जाये
मालविका जब 13 साल की थी, तो एक हादसे में उन्होंने दोनों हाथ गंवा दिये। करीब दो साल तक इलाज कराने के बाद भी डॉक्टर उनके हाथ नहीं बचा सके। हालांकि शुरूआत में उन्होंने प्रोस्थेटिक हाथ ज़रूर पहने लेकिन खाना बनाने, नमक उठाने जैसे तमाम काम अपने कोहिनियों के सहारे ही करने की कोशिश करती थी। वैसे तो मालविका अब बहुत मज़बूत शख्सियत बन गई है, लेकिन अभी भी वह समय नहीं भूल पाती, जब उनके सारे काम उनकी मां ही करती थी। इस बात का मालविका को हमेशा अफसोस रहता है और वह अपनी मां से माफी भी मांगती रहती है।
जज़्बे को सलाम
मालविका ने अपनी शारीरिक सीमाओं को समझा और उसके साथ ही दोस्ती की। ज़िंदगी की ऐसी मुश्किल घड़ी में मालविका ने खुद को कहीं भी रूकने नहीं दिया, बल्कि अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया। उन्होंने लिखने की प्रैक्टिस की और 10वीं में टॉप किया, तब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी उन्हें बधाई दी थी। इसी से उन्हें राज्य स्तरीय पहचान मिली।

लेकिन मालविका को यह कतई पसंद नहीं था कि कोई उन्हें दया की नज़र से देखें। इसलिये उन्होंने अपनी ज़िंदगी पर एक फेसबुक पोस्ट लिखी, जो वायरल हो गई। लोगों ने इसे एक प्रेरणा के रुप में अपनाया। इसके साथ लोगों ने इसे अलग – अलग टाइटल्स के साथ जमकर शेयर किया। जब लोगों ने उनकी प्रेरणादायक कहानी पढ़ी, तो उनकी ज़िंदगी से लाचारी और बेचारापन दूर हुआ और लोगों ने उन्हें सलाम किया।
सफलता की सीढ़ी
मालविका को साल 2016 में न्यूयार्क में वर्ल्ड इमर्जिंग लीडर्स अवार्ड मिला, जो किसी महिला को मिलने वाला यह पहला अवार्ड था। अवार्ड मिलने के दौरान वह पीएचडी कर रही थीं। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ से उन्हें स्पीच देने के लिए बुलाया गया। फिर वर्ल्ड इकोनॉमिक फॉरम की इंडिया इकोनॉमिक समिट में भी बुलाया गया था। इसके बाद लगातार उनकी शोहरत और मान्यता बढ़ती चली गई।
उनके इस जज़्बे को हमारा सलाम।
इमेज: फुएलिन्ग ड्रीम्स
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